Tuesday, November 5, 2013

काश ...

काश की हमने बेवफाई की होती...
यूं बेइंतेहा दर्द न सहना पडता ...
कोई और तो होता आंसूं पोछने के लिए..
कोई और होता अपना बनाने के  लिए...
 ...काश...
हमने सच में बेवफाई की होती...
न ये दिन देखते ...
न ये तन्हाई ...
सुकून का दिया जलाये बैठे होते ...
किसी और का दिल जले ये क्या सोचते ...
काश हमने सच में बेवफाई की होती...
तुम तोह अपना ग़म मयखाने में हल्का कर आगे ...
हम किस ओर मुड़ें सोचते हैं?
शायद कोई आस बाकी हो ...
शायद अब भी प्यास बाकी हो ...
पर पत्थर के दिल नहीं होता ...
सुना था आज देख भी लिया.
काश... हमने बेवफाई ही की होती 

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