Monday, November 4, 2013

कुछ उसूलन इस तरह बना ली है ज़िन्दगी मैंने...

कुछ उसूलन इस तरह बना ली है ज़िन्दगी मैंने ...
ज़िंदा होते हुए भी मौत का कफ़न औढ लिया मैंने ...

जिस तरह उमने रहगुज़र की ज़िन्दगी...
मेरी नहीं है ऐसी बंदगी ....
इसलिए अब वक़्त हो चला है कुछ बंधन तोड़ने का....
राह से राहगीरों को हटाने के लिए...
कुछ उसूलन इस तरह बना ली है ज़िन्दगी मैंने ...
ज़िंदा होते हुए भी मौत का कफ़न औढ लिया मैंने ...

बहुत दूर नज़र आते हैं मंज़र प्यार के ...
अब और नहीं सह सकते ये दर्द उल्फत के ...
इसलिए ...
कुछ उसूलन इस तरह बना ली है ज़िन्दगी मैंने ...
ज़िंदा होते हुए भी मौत का कफ़न औढ लिया मैंने ...

एक कश्ती थी जो अब ड़ूबगयी...
कोई और नयी राह ढूँढ ऐ पथिक
कुछ उसूलन इस तरह बना ली है ज़िन्दगी मैंने ...
ज़िंदा होते हुए भी मौत का कफ़न औढ लिया मैंने 

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