Sunday, February 9, 2014

असमंजस का माहौल

सीमाहीन अनंत आकाश ..
उसमें उड़ते पंछी ...
उन्हें क्यूँ उन्मुक्तता प्रदान की?
हम परिंदे धरती के ...
हर पल जीते मरते हैं ...
क़ैद हमारी मंजिल है ...
हम क्यूँ नहीं जीते हैं?

आशा निराशा का मंजर...
दर्शाता है असमंजसता का माहौल...
सब परेशां ...
सब नादान ...
उलझनों से घिरे ...
किसी अपने की तलाश नें...
कोई नहीं सुखी यहाँ ...
हर एक दिल ...
ग़म पाल रहा बड़ा...
हर आँख ढूँढती किनारा ...
साहिल न मंजिल ...
कुछ भी तो नहीं दीखता...
गहरी खाई न ओर न छोर ...
बस एक अँधेरी गुफा..
राह ढून्ढ कर जाना है|

असमंजस परेशां इंसान ...
चहूं और स्याह सन्नाटा है ...
कोई नहीं ठिकाना है ...
कहीं नहीं इसे जाना है ...
असमंजसता का माहौल ...
सब परेशां परेशां दिख रहे|

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