वक़्त है कि थमता ही नहीं
अपनी ही रफ्तार से चला जा रहा है
और हम
वहीं के वहीं
न एक कदम आगे चल सके
न एक कदम पीछे जा सके
बस वहीं कदम रुक गए
जहां थे, वहीं ।
ज़माने को देखो
वो तेज़ दौड़ा जा रहा है
एक मृगतृष्णा के पीछे
अपना सब कुछ छोड़े जा रहा है
अपना घर
अपनी मोहब्बत
अपना वजूद
फिर बचा ही क्या ?
कुछ नहीं
पर इंसान है कि
लालच का सिरा छोड़ता ही नहीं
चाहे कुछ भी हो जाये
ये इंसान सुधर नहीं सकता।
वक़्त की आंधी आएगी
सब तिनका तिनका हो जाएगा
न घर रहेगा न घरोंदा
बस बाकी रह जाएंगी यादें
यादें भी धुंधला जाएंगी
कुछ नही बचेगा
बस एक स्याह अंधेरा
और कुछ नहीं।
वक़्त का तकाजा है
वक़्त देखा है हमने
वो किसी के लिए नहीं ठहरता
वो बस चलता रहता है।
वक़्त ...
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