Wednesday, October 9, 2013

मेरा वजूद

टूट गया मेरा वजूद ...
एक भ्रम...
एक सपना ...
मोहब्बत का आशिअना ...
बिखर गया ...
कुछ न बचा उस घरोंदे का ...
जो मिल बैठ हमने बुना था ...
सरf एक भ्रम ...
वाह और कुछ न था ...
उसकी बेवफाई ने ...
शिकन माथे पे ला दी है ...
भरोसा प्यार से ...उठ सा गया है अब ..
तन्हाई का आलम है ...
सूनी आँखें हैं ...
और कुछ भी तोह नहीं बचा उन् सपनों का ...
जो सब्ज्बघ उसने दिखाये ठी ...
कहा था उसने ..
ना दामन छोडेगा ...
पर ना हाथ ही बढाया ...
ना दिल को तसल्ली दी...किस तरह कटेगी ये उम्र दराज़ ...
जो फ़राज़ उसके आने से खिल सा गया था

आज फिर सौदे की याद ने नींद चुरायी है ...
आज फिर एक आंसू आँखों में ठहर सा गया है
फिर एक फूल का दामन उजाड़ गया है
फिर एक तन्हाई का आलम छा गया है
मेरा वजूद बिखैर गया है

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