Thursday, December 19, 2013

लहरों का शोर

मेरा मन कुछ ढून्ढ रहा है
वही एकाकीपन
वही बचपन
वही खुशनुमा गलियां
वही समुन्दर का किनारा
इस निश्चल एकांत मेंभी
मेरा मन अशांत है
समुन्दर के शोर में भी
एक अजीब सुकून है
मेरा शहर मुझसे छूटा
मेरा गाँव मुझसे छूटा
पर मेरा वजूद वहीँ रहा
एक शोर ... एक एहसास
मेरा बचपन
मेरी जवानी
मेरा अल्हड़पन
कहीं खो गया
ढूँढने निकली
तो खुद खो गयी
मेरा मन मेरा शहर कहीं खो गया
मेरा बचपन पीछे छूट गया
मेरी जवानी यहीं कहीं लूट गयी
एक नारी कहीं खो गयी
एक माँ की छवि थी निराली
वो निराली भी खो गयी
बच गया तो बस एक वजूद
अपने होने का एहसास
कल तक जो आस पास था
अब वो भी बिखर गया
कुछ न बचा उस शहर का
कुछ न बची आस
एक एहसास
वो भी नहीं रहा
एक शोर ...
समुन्दर का शोर ...
बस वोही याद बाकी है
और तो कुछ भी याद नहीं...
ना बचपन ... ना शहर ...
ना वो सलमा सितारे ...
न कलम के वोह इशारे
यादें बेवफा हो गयीं
बातें बेवफा हो गयीं
बस बचा एक शोर ...
लहरों का पत्रों से टकराना ...
बस वोही शोर



No comments:

Post a Comment