Thursday, April 24, 2014

वो कहता है ...

वो कहता है कि ये खता उसने नहीं की ...
तो कोई तो बताये ये अता किसने की ?
किसने दो दिलों के बीच दूरियां पैदा की?
किसने ग़मों के बदल भिजवाए मेरे घर?
किसने तोड़ डाला दो फूलों को शाख से?
किसने अरमानों का खून किया?
कौन है वो शक्श ...
जिसे नहीं भाती खुशियाँ मेरी?
किसकी आँखों में खून सवार है?
कौन है वो दरिंदा...
जिसने परिंदों के पर काट दिए?
किसकी ये खता है ?
किसका ये जुर्म है?

वो कहता है की ये खता उसने नहीं की...
कितने खुश थे हम...
एक अलग ही दुनिया थी...
 न ग़म की घटा थी ...
न दर्द के सागर...
अब बस एक टीस सी उठती है दिल में....
काश की वो सामने आये...
और मेरी आखरी सांस जाये ...
कुछ बाकि नहीं बचा जीने के लिए...
सिवाए एक अनजाने दर्द के ...
कोई नहीं ...
कुछ भी नहीं ...
बस एक अंधी सुनसान गली है ...
जिसके उस ओर रौशनी दिखती है ...
जाना है उस ओर...
लौट के वापस न आने को...
और ...
वो कहता है ये खता भी उसने नहीं की है|

इस बार जो गयी...
तो कभी वापस आना न होगा...
फिर मुड के न देखेंगे....
बस ...
चले जाना है...
दूर कहीं, बहुत दूर...
वापस नहीं आना है|

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