Friday, September 13, 2013

मास्टर साहिब

कोई नहीं जानता वोह कहाँ से आये और कब आये .  बस यही पता था की उनको सब मास्टर साहिब कह कर पुकारते ठी त्वीत्वा गाँव में.

गाँव के स्कूल के वोह मास्टर और गिनती के चार थू बच्चे . उनमें ठी फुलवा के दो बच्चे. फुलवा खूबसूरत , गाथा हुआ शरीर, एकलौती माँ दो मासूम बच्चों की., कहते हैं फुलवा का पति एक दिन शेहेर गया तोह वहीँ का हो कर रह गया और वापस नहीं आया.

फुल्वा अकेली अपने दो बच्चों को म्हणत मजदूरी कर के पाल रही थी.

वो रोज़ सुबह बच्चों को स्कूल छोड़ कर खेतों पे काम पे निकल जाती, थाकुरैन  के घर भी काम करती और दोपहर थोडा जल्दी स्कूल पहुँचती और मास्टर साहिब तब बच्चों को पढ़ा रहे होते और वोह एक तक बैठे सारे सबक सीख लेती. फिर बच्चों को ले कर वाप[अस घर जाती और फिर काम पे लौट जाती , और गए रात को घर वापस आती.

एक दिन मास्टर साहिब ने बच्चों से गणित का एक कठिन सवाल पुछा. कोई भी जवाब ना दे पाया तभी पीछे से किसी ने दबी आवाज़ में जवाब दिया. पूरइ क्लास पलट कर देखने लगी की किसने जवाब दिया. देखा तो फुलवा थी. मास्टर साहिब भी रोज़ देखते ठी की फुलवा आ कर पीछे बैठ जाती है पर इतना सीख जाएगी उन्होंने ख्वाब में भी ना सोचा था.

जब स्कूल की घंटी बजी और सब जाने लगे तो मास्टर साहिब ने फुलवा को अपने पास बुलाया. और कहा " फुलवा तुम इतनी होशियार हो, स्कूल क्यूँ नहीं आती पढने ?" फुलवा ने कहा " मास्टर साहिब कैसे आऊँ? काम कौन करेगा?" मास्टर साहिब ने ने एक उपाय निकला और फुलवा से कहा की रोज़ शाम वोह काम से घर जाते वक़्त उनके घर आ कर पढ़े.

अब हर शाम फुलवा मास्टर साहिब के घर काम से लौटते वक़्त जा कर पढाई करती. वोह बहुत खुश थी. मास्टर साहिब उसकी अद्भुत सीखने की कला से चकित थे.

बारिशों का मौसम था. एक दिन काम से लौटते वक़्त फुलवा भीग गयी. मास्टर साहिब ने उसे अपने कपडे दिए पहनने के लिए .. सफ़ेद कुरता और धोती में फुलवा बहुत खूबसूरत दिख रही थी और बिजली कडकी... फिर क्या हुआ कोई जाने ना ... पर अगले दिन भोर को फुलवा अपने घेर पहुंची... लोगों ने उसे मास्टर साहिब के घर से सुबह निकलते देखा... गाँव में बातें बन्ने लगी और मास्टर साहिब गायब हो गए. फुलवा रोज़ मास्टर साहिब के घर जाती पर वहां सिर्फ एक ताला उसे मुंह चिडाता. गाँव वालों के तानों से तंग आ कर एक दिन फुलवा भी अपने दोनों बच्चों को ले कर शेहेर चली गयी.

शेहेर में फुलवा ने एक स्कूल में आया की नौकरी से काम शुरू किया पर उस की काबिलियत और म्हणत रंग लायी. आज २५ साल बाद फुलवा के खुद के स्कूल का समारोह है. फुलवा अपने बच्चों के साथ आई है . वहां फुलवा की मुलाक़ात मास्टर साहिब से होती है. वोह उस  के स्कूल में काम पर लगे हैं. मास्टर साहिब फुलवा को देख कर दुंग रह गए. फुलवा उनके करीब गयी और कहा " आप कहाँ काले गए ठी मास्टर साहिब? हम आप का इंतज़ार करते रह गए. मिलिए मेरे बच्चों से ... अमित, अमीषा और अमन. " मास्टर साहिब ने कहा " पर आपके तो दो बच्चे थे " फुलवा जाते जाते मुस्कुरा कर कहा " अमन आप की सौगात है मास्टर साहिब"


आज दस साल बीत गए हैं. फुलवा अब नहीं रही. पर उसके स्कूल और कॉलेज हैं जो उसके बच्चे सम्भाल्ल्तेय हैं. हाँ और एक वृद्धाश्रम भी , जहाँ मास्टर साहिब रहते हैं इस आस में की कभी अमन से मुलाक़ात हो जाये.

ये कहानी कहने को तोह मास्टर साहिब की है ... पर वाकई में यह कहानी फुलवा की है और उसके हिम्मत और साहस की निशानी है.

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